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मातिन दाई मंदिर में माता के आसन की पूजा, 2 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर दर्शन करने दूर-दराज गांवों से पहुंच रहे श्रद्धालु

कोरबा(कोरबा वाणी)-छत्तीसगढ़ प्रदेश का नामकरण 36 गढ़ों के आधार पर हुआ है। कोरबा जिले में भी 5 गढ़ हैं, जिसमें से एक मातिन का गढ़ है, यहां 2 हजार फीट ऊंची पहाड़ी पर मातिन दाई का मंदिर है, क्षेत्र के आसपास गांवों के लोगों में माता के प्रति अटूट आस्था व विश्वास है। शारदीय क्वांर नवरात्रि पर्व पर दूर-दूर से दर्शन करने श्रद्धालु पहाड़ की चढ़ाई कर मां के दरबार पहुंच रहे हैं। इस मंदिर में माता के आसन की पूजा होती है।


जिला मुख्यालय कोरबा से मां मातिन दाई मंदिर 65 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने कटघोरा से अंबिकापुर मार्ग पर स्थित गुरसिया से बायीं तरफ जाने पक्की सडक़ है, जो ग्राम पचरा होते हुए मातिन दाई जाती है। सडक़ मार्ग अच्छा होने के कारण मंदिर तक पहुंचने में असुविधा नहीं होती है। बताया जाता है कि सबसे अधिक कल्चुरियों ने यहां शासन किया। उस दौरान 36 गढ़ को रतनपुर व रायपुर शाखा में बांटा गया था। इसके विभाजक शिवनाथ नदी को बनाया गया। इस नदी के उत्तर में रतनपुर व दक्षिण में रायपुर शाखा। दोनों शाखा में 18-18 गढ़ थे। रतनपुर शाखा में मातिन गढ़ समेत कोसगाई, लाफा, उपरोड़ा और कोरबा गढ़ थे। रतनपुर में जब गोवंशीय राजाओं का शासन था उस समय मातिन गढ़ अस्तित्व में आया था। जिसमें 84 गांव आते थे। इसका इतिहास 12वीं से 16वीं शताब्दी के बीच का है। यहां मां मातिन दाई की कोई मूर्ति नहीं है, बल्कि आसन की पूजा होती है। गोड़ समाज के जगत गोत्र के लोगों को उनका पूर्वज माना जाता है। आदिवासी समाज का मां मातिन दाई पर गहरी आस्था है।