कटघोरा

परिक्षेत्र अधिकारी- कर्मचारी की निष्क्रियता से प्रतिबंधित अवधि में हरे- भरे बांस को बेदर्दी से काटकर बेच रहे वन माफिया, रेंजर ने कहा- गिरे हुए और टेढ़े- मेढ़े बांस को ट्री गार्ड के लिए लाया जा रहा उपयोग

कोरबा/कटघोरा(कोरबा वाणी)-कटघोरा वनमंडल अंतर्गत वन परिक्षेत्र कटघोरा के बांकीमोंगरा निस्तारी डिपो के पीछे स्थित घने बांस के जंगल को वनपरिक्षेत्र अधिकारी व कर्मचारी की निष्क्रियता से वन माफियाओं की नजर लग चुकी है, जिस छोटे, मझोले एवं बड़े हरे- भरे बांस को बेदर्दी के साथ कुल्हाड़ी से काटा जा रहा है और जिसे 25- 30 रुपए प्रति नग की दर से बेचा जा रहा है, जबकि बांस कटाई की नियमावली के मुताबित 1 जुलाई से 15 अक्टूबर तक बांस की कटाई पर पूर्ण प्रतिबंध है तथा उक्त समय सीमा समाप्त होने में अभी वक्त है किन्तु इस परिक्षेत्र के रेंजर, डिप्टी रेंजर व बीट कर्मचारियों के अपने दायित्वों के प्रति अनदेखी एवं लापरवाही के परिणामस्वरूप वन माफियाओं के लिए नियम की कोई पाबंदी नही है, जो बेखौफ बांस जंगल का उजाड़ कर रहे है। मामले में कटघोरा रेंजर अशोक मन्नेवार का कहना है कि टेढ़े- मेढ़े व गिरे हुए बांस को ट्री गार्ड के लिए एकत्र किया जा रहा है, अवैध कटाई जैसी कोई बात नही है। उन्होंने कहा कि यदि इस तरह की कोई बात है तो वे मौके पर निरीक्षण के लिए स्वयं जाएंगे, जबकि हकीकत रेंजर साहब के कथन के विपरीत है और छोटे- बड़े सीधे बांसों को भी काटा जा रहा वह भी प्रतिबंधित अवधि में। दूसरी ओर रेंजर साहब के कथन से एक बात तो स्पष्ट है कि वे शासन से मिले जिम्मेदारी का निष्ठापूर्ण निर्वहन करने के बजाय अपने परिक्षेत्र कार्यालय के वातानुकुलिन कक्ष में बैठकर ज्यादातर समय बिताते है, तभी इनके अधीन के कर्मचारी भी निष्क्रिय हो चले है और बांस का जंगल भगवान भरोसे अपनी हो रही दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। ऐसे निठल्ले अधिकारी- कर्मचारी के रवैये से सरकार का कैम्पा, डीएमएफ सहित विभिन्न मदो का पैसा पानी की तरह बहकर सरकारी खजाना खाली तो जरूर हो रहा लेकिन धरातल पर सकारात्मक विकास नजर नही आ रहा। वैसे भी कटघोरा वनमंडल के जंगलों में वर्षों से कतिपय रेंजर,डिप्टी रेंजर, बीट गार्ड और डीएफओ के संरक्षण में भ्रष्टाचार का मोर जमकर नचाया गया। जिसमे इमारती महत्त्व के कीमती वृक्षों की कटाई, चोरी, तस्करी का मामला हो या विभिन्न मदों से निर्मित होने वाली वन सड़कों, तालाब,डबरी, विभिन्न निर्माण की बात हो अथवा अनेक निर्माण कार्यों में फर्जी मजदूरों के नाम लाखों का असली भुगतान का मामला हो, वन अमले के भ्रष्ट लोगों पर आज तक कार्यवाही नहीं हो पाई है( कुछ मामलों में छोड़कर)। कभी अधिकारी- कर्मियों की कमी तो कभी व्यस्तता का हवाला देकर जांच को न सिर्फ शिथिल किया जाता रहा है बल्कि दोषियों को बचाने की पूरी कवायद भी होती रही है। अवैध रूप से बांस कटाई का पुराना मामला अभी भी लंबित है जिसे भाजपा के नेताओं ने मौके पर पहुंच कर देखा और प्रमाणित भी किया था। भाजपा के नेताओं ने ही छत्तीसगढ़ विधानसभा में पुटुवा स्टॉप डेम की जानकारी छिपाने का मुद्दा लाया लेकिन बाद में इन मुद्दों पर पानी फेरने का काम अधिकारियों द्वारा शुरू किया गया। आज भी कई मामले और मुद्दे जीवित हैं लेकिन दुर्भाग्य कि उनके नाम पर कोई ठोस कार्रवाई अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है।