मई दिवस और बासी के साथ क्या संबंध हैं?,संघर्ष और संकल्प को त्यौहार में मत बदलो!
कोरबा वाणी -1 मई के साथ मजदूरों के दैनिक 8 घंटे काम का अधिकार हासिल करने का संघर्ष का इतिहास हैं। दुनियाभर में मजदूरों का इस संघर्ष के इतिहास को भूला देने की साजिश के तहत ही मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में मनाने का प्रयास चल रहा हैं।मई दिवस को मजदूर दिवस के रूप में पालन कर मजदूरों का उत्सव या त्यौहार के रूप में मनाने का एक प्रयास किया जा रहा हैं।
पूंजीवाद के प्रारंभिक काल में पूंजीपति श्रमिको से दिन में 12 से लेकर 20 घंटे तक काम लिया करते थे। इसके विरोध में अमरीका के मजदूरों ने 8घंटा काम,8 घंटा मनोरंजन और 8 घंटा विश्राम का नारा दिया था। उन दिनों श्रमिकों तमाम मांगपत्र में काम का समय 8 घंटे करने का मांग शामिल हुआ करता था।
सन 1889 में पेरिस में आयोजित दूसरे अंतर्राष्ट्रीय ने 1मई को 8 घंटे काम के मांग पर मांग दिवस पालन करने के आव्हान पर दुनियाभर में मजदूरों ने 1 मई को आठ घंटे काम की मांग पर प्रति वर्ष इसी दिन हड़ताल से लेकर विरोध कार्यवाहियों आयोजित करते आ रहे हैं।
दसरे अंतर्राष्ट्रीय के आव्हान के तहत ही अमरीका के शिकागो शहर में हड़ताली मजदूरों की रेली-प्रदर्शन पर पुलिस आक्रमण से मजदूरों की शहादत हुई थी।
गौरतलब यह भी है कि दूसरे अंतर्राष्ट्रीय के आव्हान के पहले ही अमरीका के ट्रेडयूनियनों के फेडरेशन ने 1886 के 1मई को 8 घंटा काम के समय निर्धारित करने की मांग पर हड़ताल का आव्हान किया था।
बाद में 8 घंटा काम के समय के साथ मजदूरों से संबंधित अनेको मांगे 1मई के आंदोलन में शामिल किए गये।
लंबे संघर्ष के बाद मजदूरों को 8 घंटा काम करने का अधिकार हासिल हुआ। इंग्लैण्ड में अस्ट्रेलिया के निर्माण मजदूर अमरीका के ढलाई मजदूर,इस्पात से लेकर रेल व कोयला खदान के मजदूरों का इस आंदोलन में अहम भूमिका रही हैं।
ट्रेड यूनियन करना उस समय जघन्य अपराध माना जाता था। ट्रेड यूनियन करने का अधिकार,श्रमिको का मताधिकार हासिल करने का मांग बाद में 1.मई के आंदोलन में शामिल किया गया। अमरीका के कोयला खदान में यूनियन बनाने के अपराध में 10 कोयला खदान के श्रमिकों को फांसी पर चढाया गया।
आज मई दिवस और अधिक प्रासंगिक है जब केन्द्र की सरकार श्रम कानून को समाप्त कर ट्रेड यूनियन के पंजीयन की प्रक्रिया को और जटिल बनाया जा रहा है।मालिकों के हित में श्रमिकों से 8 घंटे के बदले 12 घंटा काम लेने का नियम बनाने की ओर अग्रसर हैं।
ऐसे परिस्थिति में मजदूरो को मई दिवस के संघर्ष के इतिहास से अवगत होकर उनसे संघर्ष की प्रेरणा लेने की आवश्यकता हैं।
लेकिन पूंजीपति के प्रतिनिधित्व करने वाले लोग मई दिवस को भ्रमित करने में जुटे हैं।
संघर्ष के शपथ लेने के दिवस को बासी भात खाने तक जो सीमित कर देना चाहते है वे मजदूरो को संघर्ष के रास्ते से विमुख कर शोषक वर्ग का जी हजूरी ही करने में लगे हैं।
क्या प्रदेश के लोग 1मई को वासी भात खा लेने से मजदूरो का कोई भला हो सकता है? क्या इस तरह से केन्द्र सरकार की मजदूर विरोधी नीतिया वापस हो जायेंगे।
भूपेश बघेल का यह आव्हान सिर्फ लफ्फाजी के सिवाय और कुछ नही है। क्या भूपेश बघेल यह जानकारी दे पायेंगे पिछले तीन वर्षो के अपने शासनकाल में कितने पंजीकृत श्रमिको को सरकारी योजनाओ का लाभ प्रदान किया है?
योजनाओं पर मजदूरो को धोखा देने वाले मई दिवस पर लफ्फाजी करेगा यह ही स्वाभाविक ह़ैं।
सुखरंजन नंदी
राज्य समिति सदस्य
छत्तीसगढ़ किसान सभा
जिला कोरबा