कोरबा कि बेटियों ने निभाया बेटे का फर्ज : पिता के अर्थी को दिया कंधा, चिता को दी मुखाग्नि
कोरबा(कोरबा वाणी)- जिस पिता का हाथ पकड़कर चलना सीखा। लाड प्यार से पाला, बड़ा किया। लड़कों की तरह तालीम दिलवाई। उस पिता का कर्ज उतारने के लिए लाड़ली बेटियों ने रूढ़िवादी परंपरा को तोड़ते हुवे पिता के अर्थी को न केवल कंधा दी बल्कि श्मशान घाट जाकर मुखाग्नि देकर अंतिम संस्कार किया। गमगीन माहौल के बीच पुरुष प्रधान समाज के सामने बेटियों ने एक उदाहरण पेश कर बता दिया कि लड़के-लड़की समान होते हैं। इस नजारे को जिसने भी देखा उसकी आंखों से आंसू नहीं रुक सके।
बेटे न होने कि स्थिति में अंतिम संस्कार के लिए असमंजस में थे परिवार दरअसल कोरबा निगम क्षेत्र अंतर्गत सीतामढ़ी निवासी गुजराती पाटीदार समाज के जितेंद्र पटेल कुछ दिन से अस्वस्थ थे जिनका इलाज रायपुर के निजी अस्पताल में चल रहा था। इलाज के दौरान शुक्रवार को वे इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए। दिवंगत जितेंद्र का कोई बेटा नहीं है उनकी 3 बेटियां ही हैं। ऐसे में जब अर्थी घर पहुंची तो मृतक के बड़े भाई और महालक्ष्मी टिंबर के संचालक किशोर पटेल सहित पूरा परिवार इस सोच में पड़ गए, कि अब क्या करेंगे. जितेंद्र का कोई बेटा नहीं है. सिर्फ तीन बेटियां हैं. ऐसी स्थिति में अंतिम क्रियाकर्म कौन करेगा। कौन चिता को मुखाग्नि देकर पंचतत्व मे विलीन करेगा।
बेटियों से मुखाग्नि दिलवाने परिवार ने किया तय आखिरकार आपस में सलाह मशविरा कर परिवार वालों ने तय किया कि जितेंद्र की इच्छा के अनुरूप ही बेटियां ही उनकी चिता को मुखाग्नि देंगी। इसे लेकर वरिष्ठ जनों से चर्चा की गई। मुखाग्नि बेटी से दिलवाने की बात पर जितेंद्र की पत्नी रश्मि के साथ तीनों बेटियों ने अपनी रजामंदी दी.
बेटियों ने दी अर्थी को कंधा और चिता को मुखाग्नि सभी कि हामी के बाद मृतक कि शव यात्रा निकली। सीतामढ़ी से जब शव यात्रा निकली. तब सभी राहगीरों के लिए यह कुछ नया सा था. ऐसा बहुत कम देखने को मिलता है जब बेटियां पिता के अर्थी को कंधा दें. शव यात्रा मोतीसागर पारा स्थित मुक्तिधाम तक पहुंची और इसके बाद विधि-विधान से बेटियों ने पिता का अंतिम संस्कार कर मुखाग्नि दी।
बेटियां ही थी जितेंद्र के लिए सारा संसार दिवंगत जितेंद्र के बड़े भाई किशोर पटेल ने बताया कि जितेंद्र कभी भी बेटियों को बेटे से कम नहीं समझते थे। इसलिए बेटियों से ही अंतिम क्रियाकर्म करवाने का फैसला लिया गया। उन्होंने आगे कहा कि समाज के कुछ लोग इसे लेकर तरह-तरह की बातें भी करेंगे. लेकिन हम सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि मुखाग्नि बेटियों से ही दिलवाएंगे. जीते जी जितेंद्र ने कभी भी अपनी बेटियों को बेटों से कम नहीं समझा. उसने बेटियों को बेटों की तरह ही पालकर बड़ा किया है.” उनकी बेटियां ही उनका संसार थीं।
परिवार ने बढ़ाया मनोबल तब कर सके पिता का अंतिम संस्कार गौरतलब है कि दिवंगत जितेंद्र परिवार सहित सीतामढ़ी में निवासरत थे.जहां उनका छोटा सा व्यवसाय है, जितेंद्र काफी समय से अस्वस्थ थे. जितेंद्र की तीन बेटियां हैं. बड़ी बेटी अंजली की शादी रायपुर में हो चुकी है. जबकि दूसरी बेटी गुंजन सेकंड ईयर की छात्रा है. छोटी बेटी हरसिद्धि सातवीं कक्षा में अध्ययनरत है. पिता को मुखाग्नि देने वाली बड़ी बेटी अंजलि ने कहा कि “पिता अक्सर कहते थे, कि मेरा कोई बेटा नहीं है. तो क्या हुआ, मेरी बेटियां बेटों से कम थोड़े ही है. मुझे कुछ हुआ तो मेरी बेटियां ही बेटों का फर्ज अदा करेंगी” इसलिए परिवार के सहयोग से हमने अंतिम संस्कार किया।