चैतुरगढ़ किला में मां महिषासुर मर्दिनी का ऐतिहासिक देवी मंदिर, प्राचीन काल से साधना व शक्ति की उपासना का यह रहा केन्द्र,किले के सिंहद्वार से प्रवेश कर माता का दर्शन कर मनोवांछित फल की कामना करते हैं श्रद्धालु, मेनका व हुकरा दो अन्य द्वार भी
कोरबा(कोरबा वाणी)-पाली से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर चैतुरगढ़ में आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का ऐतिहासिक देवी मंदिर है। यह किला प्राचीन काल से राजा-महाराजाओं के जमाने से साधना व शक्ति की उपासना का केन्द्र रहा है। शारदीय नवरात्रि पर अभी मंदिर में माता का दर्शन करने दूर-दराज से लोग पहुंच रहे हैं। माता के सामने मत्था टेककर मनोवांछित फल की कामना कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के 36 किलो में से एक चैतुरगढ़ कोरबा से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। किले में प्रवेश के लिये तीन द्वार बने हुये हैं। किले का मुख्य सिंह द्वार है, यहां से 100 मीटर की दूरी पर आदिशक्ति मां महिषासुर मर्दिनी का मंदिर है। नवरात्रि के पावन पर्व के मौके पर श्रद्धालु पहुंचकर मां के दर्शन कर मनोवांछित फल की कामना कर रहे हैं। किले के दोनों ओर मेनका व हुकरा द्वार भी है। तीनों द्वारों में काले पत्थरों से तराशी गई आकर्षक कलाकृतियां भी मौजूद हैं। जानकारों की मानें तो मंदिर का निर्माण नागर शैली में किया गया है जो नीचे चौड़ी एवं ऊपर वक्राकार होती है। मां महिषासुर मर्दिनी के मंदिर की आकर्षक कलाकृतियां देखकर यह जाना जा सकता है कि प्राचीन समय से ही यहां राजाओं फिर जमीदारों के द्वारा शक्तिस्वरूपा मां महिषासुर मर्दिनी की भक्ति की जाती रही है। किले का ऊपरी हिस्सा लगभग समतल मैदाननुमा है, जहां प्राचीन मंदिर के अलावा गरगज सरोवर भी है।